Thursday, January 14, 2010

हीरो होंडा का सफ़र

मेरा ऑफिस जिस जगह पर है, उस जगह का नाम हीरो होंडा चौक है. ये जगह गुडगाव में पडती है. मैंने जिस दिन से इस ऑफिस में ज्वाइन किया था उस दिन से ही नही बल्कि कई सालो पहले से ही यहाँ की रोड्स का बुरा हाल था. वो कहते है की मुसीबतें कभी भी अलग अलग नही हीरो है. बस मेरे साथ भी वही हुआ... एक तो रोअड्स ने बुरा हाल कर रखा था और उस पर ऑफिस की अटेंडेंस का पंगा. अगर आप एक मिनट भी लेट क्या हुए की हाफ डे लग गया. ऐसे में हर रोज लेट आने की तलवार सर पर हमेशा ही लटकती रहती है. मैंने अपनी इसी आप बीती को शब्दों में बाँधा है, जरा गौर फरमाए....................

हीरो होंडा का सफ़र

घडी में बज रहे थे सात,
आ गयी मुझको तो नानी याद.

भागम भाग में हुए तेयार,
मगर मिस हो गयी गयी बस, फिर से यार.

जेसे-तेसे हम पहुच गए बस अड्डे,
जानते हुए भी की रास्ते में बड़े ही गड्ढे,
हमने झट से भरे ऑटो में घुसकर जगह बनाई,
मगर टेडी-मेढ़ी सड़क से जान पर बन आई.

ऐसे-तेसे हीरो होंडा पहुचे ही गए,
पर ये क्या! सुबह के नो बजने को आये,
हमने वही से ऑफिस की दोड लगायी,
तब दिल भी धड़का और आवाज भराई.

घड़ी की सुई नो के पार चढ़ी,
आज फिर हाफ डे की मार पड़ी
आँख खुली तो नजरे घडी से टकराई
सुबह के छह बजे है, तब जाकर जान में जान आई.

प्रीति बिष्ट सिंह