Tuesday, February 23, 2010

क्या आप संतुष्ट है?

वेसे तो अप्रेजल इतनी आसानी से होता नही है... मगर यदि हो जाये तब भी हम शान्ति से बैठ नहीं पते है... हमेशा यही लगता है की सिर्फ मेरा अप्रेजल ही बेकार हुआ है.. और दूसरों का अच्छा... इसी उधेड़ बुन की कहानी इस कविता में है.

क्या आप संतुष्ट है?

अप्रेजल के बाद,
होता है ऐसा हाल,
एक ही सवाल,
उठे है बार-बार,
क्या आप संतुष्ट है, मेरे यार?

मुंह का झोल,
भोंहो की धार,
स्थिति है लाचार,
कहे है बार-बार,
मैं संतुष्ट नहीं हूँ, मेरे यार.

परसेंट है कितना,
फिगर बढ़ा कितना,
दूसरे का पता,
चल जाएँ एक बार,
क्या वो संतुष्ट है, मेरे यार?

करें तांक झांक,
यूँ करें, पूछताछ,
किसने पाया ज्यादा,
बता दे एक बार,
क्यूंकि मैं संतुष्ट नहीं हूँ, मेरे यार.

सस्पेंस है गहरा,
चेहरे पर है चेहरा,
कोई नही बताता,
लगा है ऐसा पहरा,
क्या कोई संतुष्ट भी है, मेरे यार?

अप्रेजल का डेरा,
ऐसा है खेला,
सभी को इसने है पेला,
कहे हर एक चेहरा,
मैं संतुष्ट नही हूँ, मेरे यार.
मैं संतुष्ट नही हूँ, मेरे यार.

- प्रीति बिष्ट सिंह

14 comments:

  1. अच्छे और शब्द भाव - शुभकामनाएं

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  2. मेरी सोच के अनुसार "पेला" शब्द का प्रयोग आपकी कविता का स्तर गिराता है - इस टिपण्णी को आप पढ़ कर डिलीट कर दें.

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  3. कली बेंच देगें चमन बेंच देगें,
    धरा बेंच देगें गगन बेंच देगें,
    कलम के पुजारी अगर सो गये तो
    ये धन के पुजारी
    वतन बेंच देगें।
    हिंदी चिट्ठाकारी की सरस और रहस्यमई दुनिया में राज-समाज और जन की आवाज "जनोक्ति "आपके इस सुन्दर चिट्ठे का स्वागत करता है . . चिट्ठे की सार्थकता को बनाये रखें . नीचे लिंक दिए गये हैं . http://www.janokti.com/ , साथ हीं जनोक्ति द्वारा संचालित एग्रीगेटर " ब्लॉग समाचार " से भी अपने ब्लॉग को अवश्य जोड़ें .

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  4. हंस कर जी कर सुमन बन सपने कर आबाद |
    इस सुमन का मोल क्या मुरझाने के बाद ||

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  5. परसेंट है कितना,
    फिगर बढ़ा कितना,
    दूसरे का पता,
    चल जाएँ एक बार,
    क्या वो संतुष्ट है, मेरे यार?

    बडी कडवी बात कही है आपने

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  6. होली की शुभकामनायें
    http://merajawab.blogspot.com

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  7. बेहतरीन लिखा है आपने.
    जारी रहें. शुभकामनाएं.
    [उल्टा तीर]

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  8. इस नए चिट्ठे के साथ आपको हिंदी चिट्ठा जगत में आपको देखकर खुशी हुई .. सफलता के लिए बहुत शुभकामनाएं !!

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