Tuesday, August 17, 2010

इंतज़ार

बस, चंद घंटों की ही तो है बात,
पल भर की दूरी है फिर वही साथ,
फिर भी दिल है की मानता नहीं,
दिल दिमाग की इक सुनता ही नहीं.

जानती हूँ कि बस कल भर की ही तो बात है,
उसके बाद तो फिर वही तुम्हारा साथ है.

समय है जो कि कटता ही नहीं,
ध्यान है जो कहीं बंटता ही नहीं,
अचानक से जिन्दगी यूँ उदास हो चली,
हर पर लगता, जिन्दगी मेरी निराश हो गयी.

जानती हूँ कि बस कल भर की ही तो बात है,
उसके बाद तो फिर वही तुम्हारा साथ है.


दिलो-दिमाग, जिस्म यूँ अलग दिशा में भागे,
जैसे ढील दी गयी पतंग हवा के संग नाचे,
सब कर रहे है अपनी-अपनी मनमानी,
पर तेरे बिन जिन्दगी जीना भी तो है बेमानी.

जानती हूँ कि बस कल भर की ही तो बात है,
उसके बाद तो फिर वही तुम्हारा साथ है.

पता नहीं तुम क्या सोचते होंगे,
क्या तुम भी ख्यालों में मुझे खोजते होंगे,
या तुम अपनी व्यस्तता में इतने व्यस्त हो,
कि मेरे बिन जिन्दगी जीने में, बन गए अभ्यस्त हो.
 
जानती हूँ कि बस कल भर की ही तो बात है,
उसके बाद तो फिर वही तुम्हारा साथ है.
 
अब तो बस मुझे है कल का इंतज़ार,
घडी की सुइयां भी चलने से न करे इंकार,
बस जल्दी से कल का दिन आ जाएँ,
मुझे तुम्हारा फिर वहीं साथ मिल जाएँ.
 
जानती हूँ कि बस अब कुछ पलों की ही बात है,
आज का दिन बिता, बस अब इक रात है.
 
- प्रीति बिष्ट सिंह (17 अगस्त, 2010)

2 comments: