Monday, June 3, 2013

मेरी प्यारी लेट-लतीफी

वैसे तो मुझसे मेरी लेट-लतीफी,
अक्सर मिलती रहती है,
कभी सबसे छिप कर तो,
कभी मजाक का ओढ़ना ओढ़ ये साथ चलती रहती है।

आओ तुम्हें भी फिर आज मैं,
इससे मिलवाती हूँ,
इसका परिचय मैं तुमसे,
विस्तार से करवाती हूँ।

बड़ा ही शर्मीला है,
मेरे इस मासूम का स्वभाव,
तभी तो किसी के सामने आने पर,
बिगड़ जाते है इसके हाव-भाव।

हमेशा इसकी रक्षा करते है,
मेरे बहानों के तेज़ नुकीले बाण,
वरना इसके साथ-साथ,
मेरी इज्ज़त के भी निकल जायंगे प्राण।

ज़माने से इसे छिपाने के लिए,
मैंने किये है कई जतन,
कभी अपने को कहा है "बेवकूफ हार्ड वर्कर",
तो कभी फूटी किस्मत का लगाया है बटन।

बढ़े नाजों से मैंने इससे,
अब तक है पला-पोसा,
सब मुझे भूल सकते है,
पर इसपर है मुझे पूरा भरोसा।

सब चाहते है इसे मैं,
छोड़कर नयी शुरुआत करूँ,
लेटबैक एटीट्युड से न,
अपने को यूँ मैं बर्बाद करूँ।

पर जीवन की प्राथमिकताओं में,
मैंने अपने को रखा है सबसे पीछे,
अब तुम्ही बताओ कि,
मेरी लेट-लतीफी मुझे कितना आगे तक खिंचे।

ख़त्म हो जाता है समय,
जब तक मेरे काम का आता है नंबर,
उसके बाद इस बेचारी को,
मिलते है तानों से भरे अम्बर।

मूक है इसलिए बेचारी,
विरोध नहीं है कर पाती,
इसलिए मेरी प्यारी लेट-लतीफी,
मुझे छोड़ कर नहीं है जाती।