Saturday, October 5, 2013

बहस

हस हस कर जब की जाती है लड़ाई,
उसी को "बहस" कहते है मेरे भाई,
मुश्किल नहीं, जटिल है करना यह काम,
तीन अक्षर लगा सकते है देश में जाम. 

इसे न समझो तुम इतना हल्का,
ये अकेले नहीं, कई चर्चाओं की है लंका,
साम-दाम-दंड का है ये बेजोड़ मिश्रण,
किसी के स्वाभिमान को तोड़ने में लगाएं न यह इक क्षण।

इसका शुभारम्भ करो तुम कुछ ऐसे,
उठाओ इक विषय और पकड़ो भला मानुष जो भी दिखे,
शुरू करो  किसी विषय पर तुम करनी बात,
और फिर चलाओ अपनी कटु जुबान रूपी लात। 

अड़े रहो तुम बस अपनी बात पर कुछ ऐसे,
नाराज हुआ गधा सामान लिए खड़ा हो जैसे,
कुछ भी हो डगमगाओ नहीं अपने कदम,
प्यार से समझाने वालों से दूर ही रहो हरदम।

बात न बनती दिखे तो चलाओ अपनी अकल,
अपने शब्दों में कर दो थोडा सा फेर बदल,
तब भी न बने बात तो जोर से चिल्लाओ,
ऊँची आवाज से दूसरे के मन को घबराओ।

बात तब भी न बने तो दूसरा प्लान अपनाओ,
किसी पुरानी गलती को सबके सामने ले आओ,
ध्यान रहें, बंद न हो तुम्हारे आरोपों के बान,
यहीं है, असली बहस का मूलभूत औ गूढ़ ज्ञान।