Wednesday, July 16, 2014

अभिराज और हम

तीन साल कब गए हैं बीत ,
कुछ पता ही न चला,
समय बढ़ने की ये रीत ,
रोके से रुका है क्या भला ?
 
तुमसे गई हूँ मैं इतनी जुड़,
कि देखती हूँ जब पीछे मुड़ ,
हो जाती हूँ मैं हैरान ,
कैसे बदल गया भावनाओं का सामान। 
 
कुछ समझाने से डरते कदम,
आज, मेरे तुम्हें है समझाते ,
डांट कर डराती मेरी आँखें ,
तेरी मुस्कान पर है मर जाते।
 
तेरे आधे अधूरे शब्द भी ,
मेरे आगे एक कहानी है कह जाते ,
तेरी बदमाशियों के आगे,
मेरे क्रोध के कदम क्यों है डगमगाते। 
 
"तेरे-मेरे" शब्द पर चिढ़ते भाव ,
"मेरी मम्मा " सुन आज गदगदाते,
बिखरी चीजों को देख,
आज मेरे शब्द क्यों नहीं चिल्लाते!
 
तेरी हर इच्छा हो पूरी,
चाहे रह जाएँ नींद मेरी अधूरी ,
थके हुए क़दमों को थामे ,
ऐसी क्यों है इच्छा जागे !
 
दुआं है मेरी उससे ,
हर साल जन्मदिन पर जुड़ें किस्से ,
खुशियों का यह दौर चलता जाएँ ,
समय चाहें कितना ही आगे निकल जाएँ।  
 
किसी से तुम घबराना नहीं,
गिरने के डर से कपकपाना नहीं ,
मुड़कर देखों तो एक बार पीछे ,
एक की जगह दो सायें खडें है तेरे क़दमों के नीचे। 
 
- प्रीति बिष्ट सिंह