सोच कर लगता है डर,
जब इस नए साल पर,
सबके चेहरे चमचमाएंगे,
और मेरे फेसबुक पर,
जब कोई नए अपडेट नहीं आ पाएंगे।
यह नहीं है कोई मज़ाक की बात,
बहुत गंभीर विषय है आज,
क्रिसमस की छुट्टियों पर,
क्या मैं, कहीं न जा पाऊँगी,
लगता है इस बार "स्टेटस" अपडेट नहीं कर पाऊंगी।
पिछले दो-तीन महीनों से मैंने,
परफेक्ट पाउट पाने के लिए,
हर फोटो में दिखाई इस कला की रंगत,
पर रंगत को संगत न मिल पाएंगी ,
लगता है "एक्साइटेड विद" मैं नहीं लिख पाऊंगी।
नई फोटो एल्बम की बारिशों में,
क्या मेरा वॉल सूखा ही रह जाएगा,
किसी नई जगह के बारें में ,
बात करने का मौका मुझे नहीं मिल पाएगा ,
लगता है, "ट्रेवलिंग टू " का अपडेट नहीं लिख पाऊंगी।
लाइक्स और कमेंट्स की भीड़ में,
मैं इतना अधिक पिछड़ सी जाऊंगी ,
कि मेरे दोस्त मुझे तुच्छ समझकर,
मेरे कमेंट पर स्माइली दे मुझसे किनारा कर जायेंगे,
लगता है "लाइक और कमेंट" पाने के लिए मैं तरस जाऊंगी।
कितना अच्छा था हमारा बचपन,
नानी घर जाने की ख़ुशी में भी झूलता था मन,
और आज नए लोकेशन जाने की जंग,
रातों की नींद को कर देती है तंग,
लगता है नया "लोकेशन"अपडेट नहीं कर पाऊंगी।
कभी कभी मुझे लगता है ऐसा,
मोह-माया को त्याग दूँ जैसा,
पर सोशल साइट्स की चमचमाती दुनिया,
कुछ नया करने को कर देती है मजबूर,
लगता है कुछ अलग ही ट्रिक मैं इस बार अपनाऊंगी।
पर कुछ न कुछ तो मैं नया अपडेट कर ही जाऊंगी।
- प्रीति बिष्ट सिंह
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