Thursday, May 19, 2016

"मुझे पता नहीं "

"मुझे पता नहीं" कहने वालों का,
अक्सर होता है यहीं हाल,
जब पड़ती है उनपर मुसीबत,
जीना हो जाता है दुशवार। 

"मुझे पता नहीं" अजीब है ये शब्द,
यह शब्द नहीं, लाचारी है बेबस,
जीवनभर "मुझे पता नहीं " कहने वाले,
समस्या का हल कभी नहीं है खोज पाते। 

"मुझे पता नहीं" आप जानते है या नहीं,
एक मानसिक बीमारी है यह वहीं ,
पहले शब्द फिर दिलो-दिमाग में यह घुसती,
"मुझे पता नहीं" क्यों मगर जीवन और सोच को सुस्त ये करती।

आप किसी चर्चा का हिस्सा नहीं बन पाते,
 "मुझे पता नहीं" आपकी भावना को अवरुद्ध कर जाते,
न भाव, न शब्द रह जाते है आपके साथ,
"मुझे पता नहीं " आप मेरी समझ रहें है न बात। 

"मुझे पता नहीं " ये कविता का कैसे होगा अंत,
"मुझे पता नहीं " मेरी बात में था कुछ दमखम ,
"मुझे पता नहीं " ये पढ़ आप क्या सोचेंगे मेरे बारे में ,
"मुझे पता नहीं ", "पता नहीं" श्रेणी वाले  तो मेरी व्यथा समझेंगे। 

इसलिए अगली बार जब किसी "पता नहीं" से मिले,
इस बात को हमेशा याद रखें ,
"मुझे पता नहीं "कहने वालों से न दूर भागे,
"मुझे पता नहीं " कब आप भी "पता नहीं " की श्रेणी में आ जाएं। 

आ गए तो सोच लीजिएगा अपना हाल ,
"मुझे पता नहीं " मैं क्यों समझा रही हूँ बार-बार ,
समझने वाले तो एक बार में ही समझ जाते,
बाकि "मुझे पता नहीं "कुछ कभी क्यों नहीं समझ पाते। 

- प्रीति बिष्ट सिंह 

Friday, April 15, 2016

डर

डर लगता है मुझे,
उन लोगो से मिलके,
जिनके असीमित ज्ञान भंडार को,
सब पता होता है  पहले से। 

डर लगता है मुझे,
उन लोगो से मिलके,
जो आपके आधे-अधूरे वाक्यों से,
निष्कर्ष तक की सीढ़ी बना है लेते। 

डर लगता है मुझे,
उन लोगो से मिलके,
जिनकी आवाज की तीक्ष्णता,
आपकी आवाज को हरदम है दबाते। 

डर लगता है मुझे,
उन लोगो से मिलके,
जो आपके भावों की धार को,
अपने अनुमान से है बहाते। 

डर लगता है मुझे,
उन लोगो से मिलके,
जो मेरे सांस के अहसास में भी,
बात खोज, उसका भावार्थ है निकलते। 

डर लगता है मुझे,
उन लोगो से मिलके,
जो आपको अपनी बात कहने से पहले ,
आपके गलत होने का अहसास है कराते। 

अब तो डर लगता है मुझे,
उन लोगो से मिलके,
कहीं मेरा आत्मविश्वास वाष्प बनकर,
कहीं दूर न उड़ जाएं। 

डर लगता है मुझे,
उन लोगो से मिलके,
जो अज्ञानी की जबरन चोला पहनाकर ,
कहीं उसमे मेरा दम न घुट जाएँ. 

डर लगता है मुझे,
उन लोगो से मिलके,
मन घबराता है मेरा,
ऐसे लोगो के बारे में सोच के। 

- प्रीति बिष्ट सिंह