Friday, April 15, 2016

डर

डर लगता है मुझे,
उन लोगो से मिलके,
जिनके असीमित ज्ञान भंडार को,
सब पता होता है  पहले से। 

डर लगता है मुझे,
उन लोगो से मिलके,
जो आपके आधे-अधूरे वाक्यों से,
निष्कर्ष तक की सीढ़ी बना है लेते। 

डर लगता है मुझे,
उन लोगो से मिलके,
जिनकी आवाज की तीक्ष्णता,
आपकी आवाज को हरदम है दबाते। 

डर लगता है मुझे,
उन लोगो से मिलके,
जो आपके भावों की धार को,
अपने अनुमान से है बहाते। 

डर लगता है मुझे,
उन लोगो से मिलके,
जो मेरे सांस के अहसास में भी,
बात खोज, उसका भावार्थ है निकलते। 

डर लगता है मुझे,
उन लोगो से मिलके,
जो आपको अपनी बात कहने से पहले ,
आपके गलत होने का अहसास है कराते। 

अब तो डर लगता है मुझे,
उन लोगो से मिलके,
कहीं मेरा आत्मविश्वास वाष्प बनकर,
कहीं दूर न उड़ जाएं। 

डर लगता है मुझे,
उन लोगो से मिलके,
जो अज्ञानी की जबरन चोला पहनाकर ,
कहीं उसमे मेरा दम न घुट जाएँ. 

डर लगता है मुझे,
उन लोगो से मिलके,
मन घबराता है मेरा,
ऐसे लोगो के बारे में सोच के। 

- प्रीति बिष्ट सिंह 

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