Friday, September 22, 2017

एक महान कला

कुछ दिन पहले, किसी ने कुछ कहा मुझसे,
हम समझते थे कि इसका मतलब ये है,
वो समझते थे कि उसका मतलब वो है ,
और जिसने कहा उसका मतलब तो कुछ और ही था। 

अब बताओ, इतने सारे मतलबों के बीच, 
सही मतलब हम पकड़ भी ले, तो क्या, 
बोलने वाला इतना बड़ा है शातिर,
की भाव व बोल को गोलमोल है करता। 

यानि बोल वहीं रहते है हरदम,
बस भाव गिरगिट की तरह बदलते रहते है हरदम,
आप गलत तो बात का भाव अलग, 
और आप सही हो गए तो भाव एकदम फरक। 


भावों और बातों की इस जंग ने,
बहुतों के जीवन में ऐसा हाहाकार है मचाया,
कभी ये तो कभी वो की इस ऊहापोह में जाकर, 
इस नन्हीं जान को है फंसाया। 

बाद में कुछ ज्ञानियों ने मेरे दिमाग का बल्ब जलाया, 
भावों और बातों के इस गोलमोल पर प्रकाश फैलाया,
"ये गोलमोल नहीं है, इस टर्म को समझ मेरे बच्चा,
यह एक कला है, मैनीपुलेशन नाम रखा है इसका।"

आसान नहीं  हैं इसे समझना, किसी सामान्य से,
इसमें निपुणता पायी जाती है, असाधारण ज्ञान से, 
"तुमसे न होगा", हमसे कह गए थे ज्ञानी,
पर हमने भी इस ज्ञान  को पाने की है ठानी। 

मैनीपुलेशन के भवसागर में हमने डुबकी लगाई,
हमने थ्योरी की जगह प्रैक्टिकल में रूचि दिखाई,
कर दिए हमने भी दो-चार मैनीपुलेशन,
अब समझ नहीं आ रहा कैसे संभाले बिगड़ी सिचुएशन। 

प्रैक्टिकल की हार से हमें ये समझ आया,
इस कला की महानता के आगे अपना शीश झुकाया,
सच कह गए थे हमें, वो समाज के ज्ञानी,
जानते थे वे, इस कला में हैं आग और पानी। 

कब आग लगानी है और कब डालना है पानी,
सभी कलाओं में इस कला का कोई नहीं है सानी ,
हमने तो आग में पानी और पानी में आग लगा दी,
इसलिए दुनिया ने हमें, सामान्य ज्ञान के लोगों की श्रेणी में रहने की सजा दी। 

- प्रीति बिष्ट सिंह