Tuesday, November 30, 2010

ओह! मेरी यह तमन्नाएं

कैसे उत्साहित हो उछल जाती है,
जब भी कुछ नया-सा घटता पाती,
आँखें और छोड़ी हो जाती है,
हर बार जब यह नया रस चखती है,
ओह! मेरी यह बचपने भरी तमन्नाएं.

हर सुबह एक नया जोश लाती है,
जब सूरज की किरणें मुझे छूती है,
तासीर उसकी मुझमें गर्मी भर जाती,
गर्म जोशी और जोश भर जाती,
ओह! मेरी यह रंगबिरंगी तमन्नाएं.

खुले आकाश में गोते लगाती,
चिड़ियों सी पंख पसार कहीं दूर उड़ जाती,
उस नगर में जहाँ सिर्फ प्यार है,
हमदर्दी और भाईचारे की बहार है,
ओह! मेरी यह बचकानी तमन्नाएं.

बारिश की बूंदों में रूमानी हो जाती,
मिटटी की खुशबु में डूब जाती,
दिल में जैसे कोई गुदगुदी कर जाती,
मनो कोई ठंडी ऊँगली छू जाती,
ओह! मेरी ये रंगीन तमन्नाएं.

सिसक कर आँखों से लुडक जाती,
जब दम घुटने से यह मर जाती,
हर बार लगता अब कुछ नहीं है आगे,
कैसे हम जिन्दगी से नज़र बचा कर भागे,
ओह! मेरी यह हताश होती तमन्नाएं.

तमन्नाएं मेरी यह प्यारी तमन्नाएं,
न ख़त्म होने वाली यह तमन्नाएं,
तुम संग मेरे जीवन में रंग है,
तुम हो तो मुझ में उमंग है,
ओह! मुझे छोड़ का न जाना मेरी तमन्नाएं.

मेरी प्यारी तमन्नाएं.

- प्रीति बिष्ट सिंह
(01 दिसम्बर, 2010)

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