Saturday, October 5, 2013

बहस

हस हस कर जब की जाती है लड़ाई,
उसी को "बहस" कहते है मेरे भाई,
मुश्किल नहीं, जटिल है करना यह काम,
तीन अक्षर लगा सकते है देश में जाम. 

इसे न समझो तुम इतना हल्का,
ये अकेले नहीं, कई चर्चाओं की है लंका,
साम-दाम-दंड का है ये बेजोड़ मिश्रण,
किसी के स्वाभिमान को तोड़ने में लगाएं न यह इक क्षण।

इसका शुभारम्भ करो तुम कुछ ऐसे,
उठाओ इक विषय और पकड़ो भला मानुष जो भी दिखे,
शुरू करो  किसी विषय पर तुम करनी बात,
और फिर चलाओ अपनी कटु जुबान रूपी लात। 

अड़े रहो तुम बस अपनी बात पर कुछ ऐसे,
नाराज हुआ गधा सामान लिए खड़ा हो जैसे,
कुछ भी हो डगमगाओ नहीं अपने कदम,
प्यार से समझाने वालों से दूर ही रहो हरदम।

बात न बनती दिखे तो चलाओ अपनी अकल,
अपने शब्दों में कर दो थोडा सा फेर बदल,
तब भी न बने बात तो जोर से चिल्लाओ,
ऊँची आवाज से दूसरे के मन को घबराओ।

बात तब भी न बने तो दूसरा प्लान अपनाओ,
किसी पुरानी गलती को सबके सामने ले आओ,
ध्यान रहें, बंद न हो तुम्हारे आरोपों के बान,
यहीं है, असली बहस का मूलभूत औ गूढ़ ज्ञान। 



Saturday, September 21, 2013

छोटी सी लड़की

छोटी सी लड़की हूँ मैं,
छोटी-छोटी है खुशियाँ मेरी,
छोटी-छोटी है ख्व्वाइशें मेरी,
छोटी अखियाँ जिन्हें सीती मेरी।

दुनिया बहुत है छोटी मेरी,
औ जिन्दगी है थोड़ी टेढ़ी,
बहुत कुछ डूब जाता ऐरी,
गर छोटी-छोटी खुशियाँ न होती मेरी।

छोटी सी लड़की हूँ मैं,
छोटी-छोटी है खुशियाँ मेरी,
छोटी-छोटी है ख्व्वाइशें मेरी,
छोटी अखियाँ जिन्हें सीती मेरी।

सब जीते है बहुत कुछ पाने को,
गम पीते  है मंजिल को करीब लाने को,
मैं जीती हूँ तेरे और करीब आने को,
तेरी एक छोटी सी मुस्कान पर बिखर जाने को।

छोटी सी लड़की हूँ मैं,
छोटी-छोटी है खुशियाँ मेरी,
छोटी-छोटी है ख्व्वाइशें मेरी,
छोटी अखियाँ जिन्हें सीती मेरी।

जिन्दगी भर तेरा यूँ ही साथ रहें,
फिर फ़िक्र की कहां बात रहें,
मेरे हाथों को थामे तेरा हाथ रहें,
और कोई किसी से कुछ न कहें।

छोटी सी लड़की हूँ मैं,
छोटी-छोटी है खुशियाँ मेरी,
छोटी-छोटी है ख्व्वाइशें मेरी,
छोटी अखियाँ जिन्हें सीती मेरी।

तुझ तक ही है मेरा सीमित दायरा,
मुझे समझाने को कोई नहीं है अब फायदा,
तेरे बिन, जीने का मैंने पढ़ा ही नहीं है कायदा,
अब तो तेरा प्यार मेरे मरने के साथ ही जायेगा।

छोटी सी लड़की हूँ मैं,
छोटी-छोटी है खुशियाँ मेरी,
छोटी-छोटी है ख्व्वाइशें मेरी,
छोटी अखियाँ जिन्हें सीती मेरी।

Tuesday, September 3, 2013

समाज में बढ़ती छेड़छाड़ी,
मनचलों के तानो की आरी,
घर-परिवार की जिम्मदारी,
कितनी अबला है तू नारी।

Tuesday, August 27, 2013

चुप्पी

बहुत कम बोलती हूँ मैं,
ऐसा बहुतों को लगता है,
मन ही मन कुछ घोलती हूँ मैं,
कुछ की आँखों में यह खटकता है.

कुछ कहते है डरती हूँ मैं,
इसलिए चुपचाप रहती हूं,
कुछ कहते है अहंकारी हूँ मैं,
अहम में डूबी चलती हूँ.

कुछ की मानें तो घुन्नी हूँ मैं,
तभी तो चुपचुप रहती हूँ,
कुछ समझे चालाक मुझे,
चुप रहकर सबकी चाले मैं पढ़ती हूँ.

पर मैं न तो डरपोक कोई,
और न ही अहंकारी हूँ,
न ही घुन की तरह घुन्नी,
और न ही चपल चालाक हूँ.

मैं तो चुप हूँ बस इसलिए,
क्योंकि तुम कुछ हो बोल रहे,
और कभी चुप हूँ इसलिए,
ताकि विवादों को विराम लगे.

कमजोरी है यह मेरी बहुत पुरानी,
भावनाएं व्यक्त नहीं है होती,
शब्द, भंगिमाएं साथ नहीं देती,
मेरे अरुचिकर होने की बात ये है कहती।

छूट गया है मेरे कई दोस्तों से साथ,
हाथ मिलकर जो कभी खड़े थे मेरे साथ,
डरती हूँ कि कहीं मेरे अपने न छूट जाएँ,
मेरी इस चुप्पी में मेरी खुशियों के रंग न उड़ जाएँ। 

Monday, June 3, 2013

मेरी प्यारी लेट-लतीफी

वैसे तो मुझसे मेरी लेट-लतीफी,
अक्सर मिलती रहती है,
कभी सबसे छिप कर तो,
कभी मजाक का ओढ़ना ओढ़ ये साथ चलती रहती है।

आओ तुम्हें भी फिर आज मैं,
इससे मिलवाती हूँ,
इसका परिचय मैं तुमसे,
विस्तार से करवाती हूँ।

बड़ा ही शर्मीला है,
मेरे इस मासूम का स्वभाव,
तभी तो किसी के सामने आने पर,
बिगड़ जाते है इसके हाव-भाव।

हमेशा इसकी रक्षा करते है,
मेरे बहानों के तेज़ नुकीले बाण,
वरना इसके साथ-साथ,
मेरी इज्ज़त के भी निकल जायंगे प्राण।

ज़माने से इसे छिपाने के लिए,
मैंने किये है कई जतन,
कभी अपने को कहा है "बेवकूफ हार्ड वर्कर",
तो कभी फूटी किस्मत का लगाया है बटन।

बढ़े नाजों से मैंने इससे,
अब तक है पला-पोसा,
सब मुझे भूल सकते है,
पर इसपर है मुझे पूरा भरोसा।

सब चाहते है इसे मैं,
छोड़कर नयी शुरुआत करूँ,
लेटबैक एटीट्युड से न,
अपने को यूँ मैं बर्बाद करूँ।

पर जीवन की प्राथमिकताओं में,
मैंने अपने को रखा है सबसे पीछे,
अब तुम्ही बताओ कि,
मेरी लेट-लतीफी मुझे कितना आगे तक खिंचे।

ख़त्म हो जाता है समय,
जब तक मेरे काम का आता है नंबर,
उसके बाद इस बेचारी को,
मिलते है तानों से भरे अम्बर।

मूक है इसलिए बेचारी,
विरोध नहीं है कर पाती,
इसलिए मेरी प्यारी लेट-लतीफी,
मुझे छोड़ कर नहीं है जाती।

Wednesday, April 3, 2013

मिशन वेट लॉस

वेट लॉस का सब पर ऐसा चढ़ा है तेज़ बुखार,
लडकियां तो क्या अब लड़के भी हुए है इसका शिकार,
मूंग दाल और फ्रूट सैलेड की ये करते है बातें,
जिन्हें पचाने से पहले कतराती थी इनकी आंतें।

चुगलियाँ छोड़ अब बातों के विषयों की भी बदली है कड़ी,
विषय होते है केवल दो, या तो हाई सैलरी या लो कैलरी,
जहाँ प्रोडक्ट के नाम के स्वाद और मिठास पर खरीदी जाती थी चीज़े,
वहीँ अब न्यूट्रीशनल कंटेंट को पढने भागती है नज़र प्रोडक्ट के पीछे।

रेस्तरा में जाकर हैल्दी आप्शन की यह करते है मांग,
सूखे परांठे से ही यह अपने दिल को लेते है थाम,
मोह माया से लगता है हो गए है यह बिलकुल ही परे,
हालांकि आज भी पिज़्ज़ा के स्लाइस को नज़रे है इनकी धरे।

ठन्डे और गर्म के नाम पर यह अब पीते है सिर्फ हर्बल टी,
न्यूट्रीश्निस्ट के छोटे से डाइट चार्ट के लिए तैयार है देने को भारी फी,
बैग आज भी पहले की ही तरह भरा भरा है इनका रहता,
पर अब यह डाइट नमकीन व फलों के वजन से है लदता।

इन्हें उमींद है कि बदलेगी इनकी यह विशाल काया,
इसलिए छुटी नहीं है इनकी स्माल साइज़ के कपड़ों से माया,
आज भी अलमारी में ये कर रहे है इनका बेसब्री से वेट,
अब तो इनका वेट ही बतायेगा कि इन्हें पहनने में और कितना होगा लेट।

चाहती तो मैं भी हूँ कि तुम सब अपने संकल्प में सफल हो जाओ,
उसके बाद फिर से मिलकर सब दबाकर खाना खाओ,
फिर बढ़ते वजन को देख कर के तुम घबराओ,
और अमीरों वाली डाइट करते फिर से नज़र आओ।

Monday, March 11, 2013

सैकंड इनिंग

तीस का आंकड़ा करते ही पार,
मुझे ये अब समझ में है आया,
आगे का सफ़र, और मेरे यारा,
लगता नहीं है तय कर पायेगी मेरी काया।

घबराता है देख दिल, चेहरे की पहली फाइन लाइन,
लगता है रिटायरमेंट प्लान मुझे कर लेना चाहिए साइन,
पेन के साथ कुछ ऐसी जुड़ गयी है मेरी राइम,
काम किया नहीं जाता और बीत जाता है यूँ ही पूरा टाइम।

खाने को देख पेट कहता है मुझे हरबार "हाँ-हाँ",
पर डाईजेस्टिव सिस्टम जोर से चिल्लाता है "ना-ना",
बालों की सफेदी भी अब लगी है यूँ झाकने,
लोग इन्हें देख लगे है मेरी सही उम्र आंकने।

घुटनों और पीठ दर्द में नहीं हो रहा है कोई सुधार,
लगता है जैसे यह मेरे नहीं बल्कि लिए गए हो किसी से उधार,
चार आँखें भी लगने लगी है अब तो धुंधली,
नंबर बढ़ने की जैसी गा रही हो कोई धुन सी।

एनर्जी का तो न ही पूछो हाल,
बढती उम्र ने बिगाड़ दी है इसकी चाल,
मेट्रो में उठ लोग देने लगे है मुझे सीट,
कहते है "बैठिये न, यह सीनियर सिटिज़न की ही है सीट".

कैसे तय होगा मेरा आगे का यह जीवन सफ़र,
फिट रहने की उतरने लगी है मेरी वो अकड,
हे भगवन! मुझे दो थोड़ी सी शक्ति,
वरना तीस में ही हो जाएगी जीवन विरक्ति . 

Saturday, January 5, 2013

स्वाहा रेज़लूशन स्वाहा 

अभी परसों ही था मैंने इसे बनाया ,
कल अचानक ये गिरता-पड़ता नज़र आया,
और आज न जाने क्यूँ दम तोडती है इसकी काया,
देखो फिर से पड़ रही है मेरे रेज़लूशन पर असफलता की छाया।

ठाना था कि अब सोच समझ कर खाऊँगी खाना,
दिलो-दिमाग से "हैल्दी-हैल्दी" का गाऊँगी गाना,
पर बर्थडे केक पर मेरा मासूम दिन ललचाया,
डाइट चार्ट का फिगर गड़बड़ाता नज़र है आया।

रोज़ सुबह उठकर एक्सरसाइज करने की ली थी कसम,
पर अब लगता है बन गयी है वो भारीभरकम रसम,
वजन की मशीन को भी इसे देख आया है बुखार,
बढ़ते पारे की तरह वजन बढ़ा है एक किलो नहीं बल्कि चार।

टाइम मैनेजमेंट का तो न ही पूछो हाल,
इसके चक्कर में पड़ बिगड़ गयी है मेरी चाल,
प्राथमिकताओं को लिखने के फेरे में कुछ नहीं होता है काम,
पैन और कागज़ ढूंढने में ही हो जाती है शाम।

सही जगह पर सही चीज को अब रखूंगी मैं,
बस अब ये नियम का दुबारा पालन नहीं करुँगी मैं,
कोई चीज़ मिलती नहीं है मेरे यहाँ पर,
जूते तो मिल गए है मगर मेरे मोज़े है कहाँ पर।

आठ घंटे नींद लेना है सबके लिए बहुत जरुरी,
इसी नियम ने मेरी ऑफिस से कर दी है दूरी,
आजकल बॉस मुझसे पहले ऑफिस है पहुँच जाते,
मेरी लेटलतीफी देख कहते है "आप घर ही क्यूँ नहीं है रुक जाते".

रेज़लूशन की भेड़ चाल पड़ी है मुझपर भारी,
कैसी दुविधा में फंस गयी है ये अबला नारी,
अब तो अगले साल ही जाकर मैं ये सोचूंगी,
रेज़लूशन का सॉलिड सलूशन पूरे दिमाग से खोजूंगी।

Thursday, January 3, 2013

श्रधांजलि

तकनीक के आगे गए है हम हार,
भावनाओं ने पहन लिए है श्रधांजलि वाले हार। 

आँखें जहाँ दिल-ए-हाल करती थी बयान,
अब थिरकती है सुन केवल बीबीएम की तान,
स्माईलिस और आइकन्स में हो गयी है गुम,
मुस्कान और हंसी की वो मधुर खिलखिलाती धुन।

तकनीक के आगे गए है हम हार,
भावनाओं ने पहन लिए है श्रधांजलि वाले हार। 

कौन कहाँ है, कहाँ गया या क्या है उसका हाल,
अब एफबी के स्टेटस से पता चलता है हर बार,
कमेंट्स और लाइक्स की इसमें इतनी है भरमार,
कि अब तो दर लगता है कुछ भी करते हुए इज़हार।

तकनीक के आगे गए है हम हार,
भावनाओं ने पहन लिए है श्रधांजलि वाले हार। 

प्रत्यक्ष रहकर प्रतिक्रिया देना हुआ है अब ओल्ड,
ट्वीटर के ट्वीट की आवाज है अब इतनी बोल्ड,
यहाँ चंद शब्द ही बरपाते है गज़ब का कहर,
तो फिर कोई क्यूँ उड़ेले भावनात्मक शब्दों की लहर।

तकनीक के आगे गए है हम हार,
भावनाओं ने पहन लिए है श्रधांजलि वाले हार। 

कभी हाथ थाम एक-दुसरे को हम देते थे सहारा,
अब नेटवर्किंग साइट्स व मोबाइल एप्स पर बहुत कुछ शेयर करते है यारा,
मासूमियत से अश्लीलता तक सब कुछ है यहाँ,
हमारें शरीर तो है पर हमारी आत्मा है कहाँ।

तकनीक के आगे क्यूँ  गए है हम हार,
क्यूँ भावनाओं ने पहन लिए है श्रधांजलि वाले हार।